हज़ारों में किसी को तक़दीर ऐसी, मिली है इक रांझा और हीर जैसी। पर हीर रांझे जैसी तक़दीर चाहिए क्यों? लतिका को यह सवाल बहुत परेशान करता था। वह अक्सर सोचती थी कि क्यों प्यार में लूटकर बर्बाद होकर ही प्यार कामयाब होता है। वह प्यार जिसमें प्यार करने वाले मिल पाएं, साथ रह पाए, किस्मत को उससे क्या परहेज़ है?
उरूज को यह गाना बहुत पसंद था। जब यह गाना नया नया आया था तो बहुत सुनता था और गाने का वह भाग, मैं तेरा, मैं तेरा, उसे तो अक्सर गुनगुनाता था।
आज लतिका जब उरूज को याद करती है तो सोचती है कि वह उसका रांझा था या नहीं। अगर था तो अच्छा है कि आसानी से आगे बढ़ गया, जोगी नही बनना पड़ा। खैर हीर रांझे दोनो की कमी लतिका ने पूरी करदी थी। कोई कसर तो छोड़ी नही थी उसने।
आज लतिका एक पीर से मिली। मोर पंख हाथ में लिए पीर लतिका के सर पर हौले हौले मार के आशीर्वाद दे रहे थे। फिर उन्होंने लतिका से कहा, तेरी हर मुराद पूरी हो। लतिका के मन में सिर्फ उरूज का नाम आया। पीर बाबा ने लतिका को देखा मानो उसका जवाब सुन लिया हो। लतिका डर सी गई। क्या कुछ गलत मांगा मैने? क्या मांगना चाहिए था? पैसा? सुख? बेहतर सेहत? क्या अभी भी उरूज का ख्याल ज़हन में, है घड़ी हर वक्त सही है? वह कुछ भी मांग सकती थी पर फिर भी उरूज को मांगा। इतना सब हो जाने के बाद भी! इन ख्यालों में वह डूबी ही थी कि पीर बाबा का चेहरा ढूंढला होने लगा। आस पास अंधेरा छा गया। सपने में जब घर में होने वाली हलचल कानो में पड़ी तो वह एकाएक जागी। ओह! तो वह सपना था। कितना विचित्र सपना था!
लतिका को उसकी दीदी अक्सर समझाती है कि किसी भी इंसान या चीज़ का ज़्यादा मोह अच्छा नही। शायद कुछ बातें कहने सुनने से नही, हादसों से ही सीखी जाती हैं।

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